Frequently asked questions.

What is Navdha Bhakti?

भक्ति नौ रूपों में की जा सकती है।

श्रीराम जी ने शबरी को नवधा भक्ति के बारे में ज्ञान दिया था:
अवधी भाषा में (रामचरितमानस से)
नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥

Shri Ram Ji ne Shabri ko navdha bhakti ke baare mein gyaan diya tha

avadhi bhaasha mein (Ramcharitmanas se)

navdha bhakti kahun tohi paahin | savdhaan sunu dharu man mahin ||

  1. प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।

pratham bhakti santan kar sangaa |

प्रथम भक्ति सत्संग ही है। विद्वानों, भक्तों एवं संतों के सानिध्य में प्रभु चिंतन का ज्ञान प्राप्त होता है। 

2. दुसरि रति मम कथा प्रसंगा॥

doosri rati mam katha prasanga ||

दूसरी प्रकार की भक्ति जो पाप-कर्म में प्रवृत व्यक्ति को भी पवित्र करने वाली है, वह है प्रभु लीलाओं के कथा प्रसंग से प्रेम करना। जब मनुष्य भगवान की लीलाओं के प्रति लगनपूर्वक आसक्त होगा तो उन को अपने में ढालने का प्रयत्‍‌न करेगा।

3. गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।

guru pad pankaj seva teesri bhakti amaan |

तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरू के चरण कमलों की सेवा।

4. चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥

chauthi bhakti mam gun gaan karei kapat taji gaan ||

चौथी भक्ति में वह माना जाएगा जो छल-कपट रहित होकर श्रद्धा प्रेम व लगन के साथ प्रभु नाम सुमिरन करता है।

5. मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥

mantra jaap mam dridh vishvaasaa | pancham bhajan so ved prakasha ||

मन्त्र का जाप और दृढ़ विश्वास-यह पांचवी भक्ति है जो वेदों में प्रसिद्ध है।  

6. छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥

chatt dam sheela birati bahu karma | nirat nirantar sajjan dharma ||

छठवीं भक्ति है, जो शीलवान पुरुष अपने ज्ञान और कर्मेन्द्रियों पर नियंत्रण रखते हुए भगवद् सुमिरन करते हैं।

7. सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥

saatvam sam mohe may jag dekha | moten sant adhik kari lekha ||

सातवीं भक्ति में व्यक्ति सारे संसार को प्रभु रूप में देखते हैं।

8. आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुं नहिं देखइ परदोषा॥

aathvam jathaalabh santoshaa | sapnehun nahin dekhai pardoshaa ||

आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए उसी में सन्तोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को ना देखना।

9. नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना॥

navam saral sab san chhalhinaa | mam bharosa heeny harash na dinaa ||

नौवीं भक्ति है  छल कपट का मार्ग छोड़ दूर रहना  और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद का न होना।

नव महुं एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरूष सचराचर कोई॥
सोइ अतिसय प्रिय भामिनी मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥

nav mahun ekau jin ke hoi | naari purush sacharaachar koi ||

soi atishay priya bhaaminee more | sakal prakar bhagati dridh toren ||

उपरोक्त नौ प्रकार की भक्ति में कोई भी भक्ति करने वाला व्यक्ति भक्त होता है और भगवान का प्रिय होता है |

भक्ति हुए बिना निष्काम कर्मयोग कभी नहीं हो सकता।भगवद् भक्ति ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा हम निष्काम कर्म करते हुए ज्ञान के प्रकाश में अपना आत्मदर्शन कर पाते हैं।